tag:blogger.com,1999:blog-1483644137866047446.post4728032551540472139..comments2023-10-08T15:21:23.080+05:30Comments on मेरा रोजनामचा: रूढ़ियां तोड़ने के लिये समाज सुधारक की प्रतीक्षा क्यों ?सुशांत सिंघलhttp://www.blogger.com/profile/04640594667546475831noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-1483644137866047446.post-18194656323044722532009-02-13T09:44:00.000+05:302009-02-13T09:44:00.000+05:30पुराणमित्येव न साधुसर्वं , न चापि सर्वं नवमित्यव...पुराणमित्येव न साधुसर्वं , न चापि सर्वं नवमित्यवयम।<BR/>सन्त: परिक्ष्यान्यतरद भजन्ते , मूढ: पर प्रत्ययनेय बुद्धि।।<BR/>'जो पुराना है , वह न तो सबका सब ठीक है और जो नया है वह केवल नया होने के कारण अग्राहय है। साखु बुद्धि के लोग दोनो की परीक्षा करके ही स्वीकार या अस्वीकार करते हें। दूसरों के कहने पर तो मूढ ही राय बनाते हें।'संगीता पुरी https://www.blogger.com/profile/04508740964075984362noreply@blogger.com