यौन शिक्षा यानि क्या (2)
प्रकृति ने यूं तो यौन भावना प्रत्येक जीवात्मा को दी है परन्तु उसका सदुपयोग अपने सर्वतोन्मुखी विकास के लिये कैसे किया जाये - यह विद्या सिर्फ मनुष्य के ही पास है। आइये देखें, कैसे ?
विकास की बात उस बिन्दु से शुरु होती है जहॉं हम किसी व्यक्ति के आकर्षण में - या यूं कह लें कि सम्मोहन में फंसते हैं। उस व्यक्ति की उपस्थिति में हमारे मस्तिष्क तक जो सिग्नल पहुंचते हैं वह हमें सुखद अहसास (pleasant sensations) देते हैं। यह सुखद अहसास बहुत कुछ ऐसा ही है जैसे भोजन को देखकर हमें सुखद अनुभूति होती है। पर जैसे, हम भोजन को देखने भर से संतुष्ट नहीं हो सकते, उसी प्रकार हमें आकर्षित कर रहे व्यक्ति को देखना भर हमारे लिये पर्याप्त नहीं है, उसे पाये बिना हमारी क्षुधा शान्त नहीं होती। हमारे सामने खीर रखी हो और उसे खाने की अनुमति न हो तो हमारी आंखों के आगे हर समय खीर ही रहेगी। जिधर भी जायेंगे, खीर ही दिखाई देगी। सोयेंगे तो भी खीर के ही सपने देखेंगे। हर समय इसी जुगाड़ में लगे रहेंगे कि खीर कैसे हासिल की जाये। कुछ - कुछ ऐसा ही हमारे साथ उस समय होता है जब कोई व्यक्ति हमें आकर्षित कर रहा हो पर उसे दूर से देख तो सकते हैं पर बात नहीं कर सकते, स्पर्श नहीं कर सकते। अब आप ही बताइये, ऐसे में हमें दिन-रात उस व्यक्ति के सपने आयेंगे या नहीं ! क्या हमारा किसी और काम में मन लगेगा? क्या हर समय यही जुगत नहीं लड़ाई जायेगी कि 'उसके' दीदार कैसे हों, उससे बात कैसे हो, एकान्त में मुलाकात कैसे हो?
सुखद अहसास पाने की और अन्ततः मिलन की यह भूख हमें प्रेरित करती है कि हम अपने आकर्षण का केन्द्र बिन्दु बन रहे उस व्यक्ति का दिल जीतें और इस सीमा तक जीतें कि हम उसे प्राप्त कर सकें।
मुझे जिसको पाने की लालसा है - वह यदि मेरे सामने कुछ दूरी पर खड़े होकर मुझे प्रोत्साहित करता रहे, लक्ष्य की ओर बढ़ने के लिये प्रेरित करता रहे तो दुनिया का कोई भी लक्ष्य मेरे लिये असंभव नहीं रह जायेगा। अपने आकर्षण के पात्र को पाने की चाह में मैं अपने जीवन में लक्ष्य की ओर बढ़ता चला जाऊंगा। मुझे यह लगता रहेगा कि जिस दिन मुझे मेरा लक्ष्य मिलेगा, उसी दिन मुझे मेरी चाहत भी मिल जायेगी। चिकित्सा वैज्ञानिकों ने अध्ययन करके पाया है कि यौन आकर्षण के प्रभाव स्वरूप यौन हार्मोन की अतिरिक्त मात्रा हमारे रक्त में आकर मिल जाती है जो हमारी शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक क्षमताओं को नई धार देती है। यह हार्मोन तब तक हमारी सहायता करता रहता है जब तक हमें हमारी चाहत मिल नहीं जाती। आपने देखा या सुना होगा कि गधे के आगे गाज़र लटका कर रखो तो वह सीधे गाज़र की दिशा में बढ़ता चला जाता है। बस, प्यार में हम सब ऐसे ही गधे बन जाते हैं। पर यदि गाज़र के स्थान पर लक्ष्य की ओर प्रेरित कर रहा हमारा प्रिय व्यक्ति हो तो ऐसे गधेपन को बारम्बार प्रणाम !
बस, एक बात ध्यान रखनी पड़ती है - गधा गाज़र की ओर तब ही बढ़ता है जब उसे लगे कि बस, एक कदम बढ़ाया और गाज़र मेरी! हम बच्चों को प्रेरित किया करते हैं कि अगर परीक्षा में 80 प्रतिशत अंक आ गये तो साइकिल दिला देंगे या मसूरी, नैनीताल, मुंबई आदि कहीं घूमने चलेंगे। यदि बच्चा 40 प्रतिशत नंबर लाया करता है और उसे लगता है कि वह कितना भी प्रयास कर ले, 60 प्रतिशत से ऊपर नहीं जा सकता तो वह 80 प्रतिशत के लक्ष्य को असंभव मानकर इस दिशा में प्रेरित होगा ही नहीं। हां, यदि वह 70 प्रतिशत के आस-पास रहता है तो उसे लगेगा कि थोड़ा सा जोर लगाऊं तो 80 प्रतिशत नंबर आ सकते हैं और ईनाम मिलने की संभावना है। ऐसे में वह उत्साह में भर कर प्रयास में लग जायेगा।
यदि लक्ष्य को पाने की कतई कोई संभावना नहीं है तो मेरे पांव लक्ष्य की ओर बढ़ेंगे ही नहीं। दूसरी ओर, यदि लक्ष्य तक पहुंचने से पहले ही मुझे मेरी चाहत मिल जाये तो मुझे जो निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा मिल रही थी, वह समाप्त हो जाती है और एक निश्चिन्तता, एक पूर्णता का आभास मेरी प्रगति को वहीं का वहीं रोक देते हैं।
(मित्रों, इससे आगे की चर्चा कल करेंगे। तब तक के लिये आप सबको नमस्कार। अब विदा दीजिये !)
Sushant K. Singhal
www.sushantsinghal.blogspot.com
अच्छी पोस्ट है।
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