फैसला आपके हाथ

क्या आप जानते हैं कि आपका शहर भी आपका परिचय देता है? किस शहर में, किस कालोनी में आपका घर है, कैसा पड़ोस है, आस पास का वातावरण कैसा है - ये सारी बातें अन्ततः आपका भी परिचय बन जाती हैं। प्लाट खरीदने चलें तो उसका दाम भी इसी बात पर निर्भर करता है कि प्लाट कहां पर है। जितनी अच्छी कालोनी, उतना महंगा प्लाट! आखिर क्यों न हो? आपके पड़ोस को देख कर लोग आपके रहन सहन का, आपकी आदतों का अंदाज़ा लगाते हैं। आप खुद भी तो ऐसा ही करते हैं ?
फिर क्या कारण है कि आप ’गंगा के पवित्र तट पर’ रहने के बजाय ’गंदे नाले की बगल में’ रहना चाहते हैं ? क्यों आप अच्छी-भली पावन, शीतल जल-धारा को, जो हमेशा से आपके नगर की जीवन धार रही है, गंदा, बदबूदार सीवर बनाये हुए हैं? क्या मच्छर मक्खी और महामारी का भय आपको नहीं सताता ? अभी अपने घर की छत से क्या देखते हैं आप? काला बदबूदार पानी, कूड़े से भरी हुई पालिथिन की थैलियां, गन्दगी में मुंह मारते जानवर? क्या आपका मन इस गन्दगी में इतना रम गया है कि अब ये सब आपको दुःखी भी नहीं करता ? जरा सोचिये, अगर ये नदी सुन्दर और स्वच्छ हो जाये तो क्या आपकी भी शान नहीं बढ़ेगी? क्या आपकी जमीन, जायदाद की इज्जत व उसकी कीमत भी अपने आप नहीं बढ़ जायेंगी?
कभी हरिद्वार में गंगातट पर सुबह शाम आरती होते देखी है? हम वही दृश्य अपनी पांवधोई गंगा के तट पर भी साकार होते देखना चाहते हैं। यही सपना आप भी दिन रात देखने लगें तो यह सपना नहीं, हक़ीकत बन जायेगा।
क्या सोच रहे हैं आप? ये शहर आपका, नदी भी आपकी! खुशियां आपकी, मान - सम्मान भी आपका। आपको क्या करना है - ये भी आप ही को तय करना है।
अपने शहर का, अपनी नदी का सम्मान करें, इसी में आपका भी सम्मान है।
सुशान्त सिंहल
संयोजक - पांवधोई गंगा बचाओ आंदोलन

मित्रों, हम तीन लाख कार्यकर्ता इस आंदोलन से जोड़ने का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं। अभी १०००० के लगभग हस्ताक्षर एकत्र हो चुके हैं। यदि गंगा को बचाने में आपको भी रुचि है तो इस आंदोलन में कंधे से कंधा मिला कर साथ चलें। जन-जन को प्रेरित करें कि वह नदी में ठोस कूड़ा - कचरा न तो स्वयं डालें और न ही किसी और को डालने दें। जिस किसी के घर, दुकान, फैक्टरी से नाली आकर नदी में गिर रही हो, उसको बन्द कराने के लिये व्यावहारिक रास्ते तलाशें।
मित्रों, हम अपनी जिम्मेदारियों से मुंह छुपा कर, हर जिम्मेदारी सरकार की समझने लगे हैं, इसी का दुष्परिणाम हमारे सम्मुख आ रहा है। ये सरकार, ये नौकरशाही भी तभी काम करती हैं जब जनता जागृत होती है। मालिक सोया रहे तो नौकर कैसे जागते रह सकते हैं? अपनी भूमिका को पहचानिये। हम स्वयं बदलेंगे तो यह देश भी तभी बदलेगा।
यदि आपको अकेले जन हित के मुद्दे उठाने में संकोच हो या शर्म आती हो तो अपने मित्रों के साथ मिल कर कोई क्लब, सोसायटी बना लीजिये। आपके शहर में कुछ संस्थायें पहले से ही सक्रिय होंगी। उनके सदस्य बन जाइये। नेताओं को, प्रशासन को हड़काइये। उनको विवश कीजिये कि वे कुछ काम धाम भी करें। आई कुछ बात समझ मां ?

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