यौन शिक्षा - यानि क्या ?
जब भी हम किसी अपरिचित व्यक्ति से मिलते हैं तो या तो हम उसके प्रति उदासीन रहते हैं या फिर उसके प्रति आकर्षण अथवा विरक्ति की भावना हमारे अंदर जन्म लेती है। विरक्ति अथवा उदासीनता का भाव आया तब तो मामला यहीं समाप्त हो जाता है पर यदि हमें उस व्यक्ति के प्रति कुछ आकर्षण अनुभव होता है तो हम यह चाहते हैं कि वह व्यक्ति भी हमें पसन्द करे। हमें कोई अपरिचित व्यक्ति क्यों अच्छा या बुरा लगने लगता है यह हम तुरन्त समझ पायें, यह आवश्यक नहीं है। हमारी पांचों ज्ञानेन्द्रियों के माध्यम से सामने वाले व्यक्ति के बारे में जो जानकारी हमारे जाग्रत व अद्र्धजाग्रत मस्तिष्क तक पहुंचती हैं, उनके आधार पर हमारे भीतर बैठे थर्ड अंपायर का निर्णय आता है - 'आउट' या 'नॉट आउट' ! स्वाभाविक ही है कि अंपायर कुछ कायदे-कानूनों के आधार पर निर्णय लेता है और इस मामले में ये कायदे - कानून बनते हैं -- हमारी शिक्षा-दीक्षा, हमारे संस्कार, हमारे आदर्श, नैतिक मूल्य, हमारी अभिरुचियॉं और हमारे सौन्दर्यबोध आदि के आधार पर । हमारे मस्तिष्क रूपी थर्ड अंपायर को निर्णय लेने में अक्सर पलक झपकने जितना ही समय लगता है।
मनोवैज्ञानिकों का आकलन है कि हमारे मस्तिष्क तक जो भी सूचना ज्ञानेन्द्रियां भेजती हैं, उसमें लगभग 60 प्रतिशत आंखों से ही पहुंचता है। बाकी 40 प्रतिशत में हमारी नाक, कान, जिह्वा व त्वचा से पहुंचने वाला डाटा सम्मिलित है। स्वाभाविक ही है कि हमारे सामने मौजूद व्यक्ति का वाह्य व्यक्तित्व यदि मनभावन है अर्थात् हमारे सौन्दर्य बोध की कसौटी पर खरा उतरता है तो निर्णय उसके पक्ष में होने की संभावना बहुत अधिक हो जाती है।
इन पांच ज्ञानेन्द्रियों के अलावा एक और भी तत्व है जो हमारे निर्णय को हद दर्जे तक प्रभावित करता है और वह तत्व है - विपरीत यौन के प्रति आकर्षण। यदि हमारे सौन्दर्यबोध में विपरीत यौन के प्रति सहज आकर्षण और जुड़ जाये तो फिर तो भगवान ही मालिक है। ऐसी स्थिति में निर्णय सामने वाले के पक्ष में होना लगभग तय ही है - मामला 'मैच फिक्सिंग' जैसा हो जाता है!
कोई व्यक्ति हमें आकर्षित करता है तो इसका अर्थ है कि वह हमारी ज्ञानेन्द्रियों को सुखद अनुभूति (pleasant sensations) देने में समर्थ हो रहा है। यह सुखद अनुभूति लगातार पाते रहने की लालसा हमें विवश करती है कि हम हमारे सुख के स्रोत व्यक्ति के आस-पास रहें, उसके और निकट जायें, उसे और करीब से जानें ताकि यह सुखद अनुभूतियॉं और गहरी और शक्तिशाली हों। यह तभी संभव हो पाता है जब वह व्यक्ति भी हमारे प्रति आकर्षण का भाव अनुभव करे, हमारा साथ उसको भी वैसी ही सुखद अनुभूति दे, जैसी हमें अनुभव हो रही हैं। यदि ऐसा न हो तो उसकी निकटता हमें कैसे और क्यों कर मिलेगी?
आप जिस व्यक्ति की ओर खिंचे चले जा रहे हैं, उसे भी अपनी ओर ठीक ऐसे ही खींचने में सफल होना - हम सब के जीवन में बार-बार आने वाली महत्वपूर्ण परीक्षा है। यह कसौटी है हमारे समूचे व्यक्तित्व की सफलता की। जब हम इस चुनौती को स्वीकार कर लेते हैं तो इसमें से हमारे व्यक्तित्व के सर्वतोन्मुखी विकास की राहें खुलती हैं। इस कार्य में प्रकृति भी हमारी सहायता करती है। प्रकृति की इस व्यवस्था को समझना ही सच्ची यौनशिक्षा (sex education) है ।
जब हम विद्यार्थियों के लिये यौनशिक्षा की आवश्यकता पर बल देते हैं तो यौन शिक्षा से हमारा तात्पर्य है - यौन भावना क्या है, कैसे कार्य करती है यह किशोरों को समझाना ताकि वे प्रकृति की इस अमूल्य देन को अपने व्यक्तित्व के विकास हेतु तथा जीवन में सफलता पाने के लिये सीढ़ी के रूप में प्रयोग कर सकें उसका लाभ कैसे उठाया जाना चाहिये, यह सीख सकें। पर हमारे कर्णधार व हमारे शिक्षा शास्त्री यह समझ बैठे हैं कि यौन शिक्षा का अर्थ है - स्कूली छात्र-छात्राओं को स्त्री पुरुष के आन्तरिक व वाह्य जननांगों की संरचना व क्रियाविधि (anatomy & physiology) की सैद्धांतिक व व्यावहारिक जानकारी देना, उनको गर्भनिरोध के उपायों के बारे में बताना ताकि वे 'प्रेक्टिकल' के दौरान अनचाहे गर्भ से बच सकें।
(शेष कल को)
Sushant K. Singhal
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अच्छी पोस्ट है।प्रतिक्षा रहेगी।
जवाब देंहटाएंइस लेख की अगली कडी का इन्तजार रहेगा। आपने एकदम सही रूप में यौन शिक्षा को परिभाषित किया है।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
अनचाहे गर्भ से बचना तो ठीक है. ये तो यौन शिक्षा में होना ही चाहिये. पर जो आपने बताया वो तो मुझे लगता है कि बेहद जरूरी है. इसे भी शामिल करना चाहिये.
जवाब देंहटाएंउत्साह वर्द्धन हेतु आभार ! अभी मेरी एक पोस्ट पर प्रतिक्रिया आई कि विचार तो बहुत अच्छे हैं परन्तु ब्लॉग के फार्मेट को देखते हुए लेख ज्यादा लंबा हो गया है। ऐसे लेख किश्तों में दें। मुझे यह बात जंची और इसी सुझाव पर अमल कर रहा हूं।
जवाब देंहटाएंसुशान्त सिंहल