मांसाहार और मानव

उक्त विषय पर चल रहे विमर्श में दो एक बातें और जोड़ना चाहूंगा ।  इन बिंदुओं को भाई सलीम ने अपने विद्वतापूर्ण आलेखों में (www.swachchsandesh.blogspot.com) बार-बार छुआ है अतः इस बारे में भ्रम निवारण हो जाये तो बेहतर ही होगा !

 भाई सलीम का मानना है कि ईश्वर ने मनुष्यों को जिस प्रकार के दांत दिये हैं वह मांसाहार के लिये उपयुक्त हैंयदि मांसाहार मनुष्य के लिये जायज़ न होता तो मनुष्यों को नुकीले दांत क्यों दिये जाते।

 सलीम के इस तर्क को पढ़ने के बाद मैने अपने और अपने निकट मौजूद सभी लोगों के दांत चेक किये।  मुझे एक भी व्यक्ति का जबाड़ा कुत्ते, बिल्ली या शेर जैसा नहीं मिला । जो दो-तीन दांत कुछ नुकीले पाये वह तो रोटी काटने के लिये भी जरूरी हैं।  यदि मनुष्य के दांतों में उतना नुकीलापन भी न रहे फिर तो वह सिर्फ दाल पियेगा या हलुआ खायेगा, रोटी चबानी तो उसके बस की बात रहेगी नहीं। 

 यदि यह चेक करना हो कि हमारे दांत मांस खाने के लिये बने हैं या नहीं तो हमें बेल्ट, पर्स या जूते चबा कर देखने चाहियें ।  कम से कम मेरे या मेरे मित्रों, पड़ोसियों के, सहकर्मियों के दांत तो इतने नुकीले नहीं हैं कि चमड़ा चीर-फाड़ सकें।  हमारे नाखून भी ऐसे नहीं हैं कि हम किसी पशु का शिकार कर सकें, उसका पेट फाड़ सकें। 

 यदि प्रकृति ने हमारे शरीर की संरचना मांसाहार के हिसाब से की है तो फिर हमारे दांत व हमारे पंजे इस योग्य होने चाहियें थे कि हम किसी पशु को पकड़ कर उसे वहीं अपने हाथों से, दांतों से चीर फाड़ सकते।  यदि चाकू-छूरी से काट कर, प्रेशर कुकर में तीन सीटी मार कर, आग पर भून कर, पका कर, घी- नमक, मिर्च का तड़का मार कर खाया तो फिर हम मनुष्य के दांतों का, पाचन संस्थान का त्रुटिपूर्ण हवाला क्यों दे रहे हैं?

 पाचन संस्थान की बात चल निकली है तो इतना बता दूं कि सभी शाकाहारी जीवों में छोटी आंत, मांसाहारी जीवों की तुलना में कहीं अधिक लंबी होती है।  हम मानव भी इसका अपवाद नहीं हैं। जैसा कि हम सब जानते ही हैं, हमारी छोटी आंत लगभग २७ फीट लंबी है और यही स्थिति बाकी सब शाकाहारी जीवों की भी है।  शेर की, कुत्ते की, बिल्ली की छोटी आंत बहुत छोटी है क्योंकि ये मूलतः मांसाहारी जानवर हैं।

 वैसे भी हमारा पाचन संस्थान इस योग्य नहीं है कि हम कच्चा मांस किसी प्रकार से चबा भी लें तो हज़म कर सकें।  कुछ विशेष लोग यदि ऐसा कर पा रहे हैं तो उनको हार्दिक बधाई।

 सुशान्त सिंहल

 

टिप्पणियाँ

  1. मनुष्य प्रारंभिक रूप से मांसाहारी नहीं है। बिना मांसाहार के तो वह जीवित रह सकता है लेकिन बिना शाकाहार के नहीं।

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  2. अरे गुरु, खाउ आदमी का क्या है, बहाना ढूंढ़ ही लेगा, कुछ अफ्रीकन कबीले वालों ने अपने दांत मानव भक्षण के लिये भी पूर्णतया: उपयुक्त पाये! मुर्गे-मेमने कि क्या बिसात! भैया जिन्हें जानवरों के जीवन और खुदा कि बनाई खुदाई के लिये कोई सम्मान नहीं, वो बेचारे जीव-जंतु खाने में लगे हैं अब चाहे मेमना हो या सुअर, सब खब जायेगा

    खब जायेगा

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  3. aapne to salim ke naapak dant aur aant ko manushyo ke liye pak
    saabit kar diya.

    inke kutark Zakir naik prerit(nakkal)hai.

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