यह परिचर्चा आपके लिये भी है!
(श्री योगेश छिब्बर किसी परिचय के मोहताज़ नहीं हैं । महाराज सिंह कॉलेज, सहारनपुर में अंग्रेज़ी के प्रवक्ता श्री छिब्बर एक ऐसे कवि के रूप में अधिक चर्चित हैं जिनकी रचनाओं में प्रवाहित होने वाली अध्यात्म की अन्तर्धारा हमें भाव विभोर ही नहीं करती बल्कि सुकून भी देती है। उनकी क्षणिकायें जहां एक ओर अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त कथक नृत्यांगना व विश्व की सबसे युवा योगाचार्या प्रतिष्ठा शर्मा की कथक प्रस्तुतियों का कथानक बनती हैं तो वहीं योगेश छिब्बर का संदेश - "आस्था है तो बंद द्वार में भी रास्ता है" हज़ारों घरों, कार्यालयों, शो रूम्स की न केवल शोभा बढ़ा रहा है अपितु व्यथित हृदयों को आशा का संदेश भी दे रहा है।
पिछले दिनों 'चिंतन' स्मारिका के संपादक के नाते मैने एक परिचर्चा का आयोजन किया था जिस सिलसिले में श्री छिब्बर से भी बात हुई । उनके विचार अपने ब्लॉग के सुधी पाठकों के लिये रुचिकर होंगे, यह सोच कर पुनः उद्धृत कर रहा हूं। )
प्रश्न - क्या आधुनिक भारत आपके सपनों का भारत है। यदि नहीं, तो आपके सपनों का भारत कैसा होगा?
उत्तर - मैं जिस भारत का स्वप्न देखा करता हूं वह एक बार पुनः विश्वगुरु के आसन पर विराजमान, सामथ्र्यवान, विश्व वंदनीय भारत है जिसके एक हाथ में आध्यात्म का ध्वज होगा और दूसरे हाथ में ध्वज होगा विज्ञान एवं तकनीक का।
प्रश्न - आपकी दृष्टि में हमारे देश की पांच सबसे बड़ी समस्यायें कौन - कौन सी हैं?
उत्तर - सार्वजनिक व निजी जीवन में नैतिक मूल्यों का ह्रास, भ्रष्टाचार, राजनीति का महत्व बहुत अधिक बढ़ जाना, सामाजिक समरसता पर हमेशा खतरा मंडराते रहना हमारी प्रमुख समस्यायें गिनाई जा सकती हैं। एक शिक्षक होने के नाते मैं यह भी कहना चाहूंगा कि शिक्षा के क्षेत्र में एक विसंगति देखने में आ रही है। कुछ थोड़े से लोगों को बहुत उच्चस्तरीय शिक्षा उपलब्ध है और एक विशाल जनसंख्या को मिल रही शिक्षा में न्यूनतम स्तर का भी अभाव प्रतीत होता है। यह विसंगति एक विशेष समस्या को जन्म देने वाली सिद्ध हो रही है।
प्रश्न - अगर आपको कभी इतनी शक्तियां प्राप्त हों कि आप समाज व देश हित में जो भी चाहे, निर्णय ले सकें तो आप कौन से ऐसे पांच उपाय करेंगे जिनसे देश की दशा व दिशा सुधर सकती है?
उत्तर - भ्रष्टाचार से निपटने के लिये कठोरतम कानून की व्यवस्था कराना मेरी पहली प्राथमिकता होगी। उच्च स्तरीय शिक्षा सभी बच्चों व युवाओं को मिले, यह भी सुनिश्चित करना होगा। देश की प्रगति में विज्ञान व तकनीक का महत्व अत्यधिक है, अतः इनको समुचित बढ़ावा मिले, यह भी मेरी प्राथमिकता होगी। देश के निर्माण में हर क्षेत्र का योगदान महत्वपूर्ण है, सभी को समान महत्व दिया जाना मंगलकारी होगा, ऐसा मेरा मानना है। राजनीतिज्ञों को बाकी सबसे अधिक महत्व दिया जाना समाज को राज्य का मुखापेक्षी बना देता है जो समाज के लिये हितकर नहीं है। इस स्थिति में बदलाव आना चाहिये। नैतिक मूल्यों में अवमूल्यन का मेरी दृष्टि में प्रमुख कारण यह है कि आज हमारी शिक्षा में नैतिकता व आध्यात्मिकता का समावेश नहीं है, यदि कहीं कुछ थोड़ी बहुत नैतिक शिक्षा दिखाई देती है तो वह औपचारिकता मात्र है। व्यक्ति के निर्माण में आध्यात्मिकता का बहुत बड़ा हाथ होता है अतः शिक्षा में इसको समुचित महत्व मिले, यह भी मुझे अत्यावश्यक दिखाई देता है।
प्रश्न - हमारे देश में सेक्युलर समाज का आदर्श अंगीकार किया गया है। आप शिक्षा में आध्यात्मिकता व नैतिकता के समावेश की वकालत कर रहे हैं किन्तु कुछ लोग इसे शिक्षा का भगवाकरण मानकर उत्तेजित हो उठते हैं। क्या धर्मनिरपेक्षता का आदर्श और शिक्षा में आध्यात्मिकता का समावेश - इन दोनों में अन्तर्विरोध नहीं है?
उत्तर - पहले तो मैं यह स्पष्ट कर दूं कि सेक्युलर हेतु धर्मनिरपेक्षता शब्द का प्रयोग मेरी दृष्टि में सही नहीं है। धर्मनिरपेक्ष होना तो किसी व्यक्ति के लिये संभव ही नहीं है। सेक्युलर शब्द का भाव यह है कि राज्य किसी भी एक मत या रिलीजन को अन्य की तुलना में अधिक या कम महत्व न देकर सबके प्रति समदृष्टि रखे। सर्वधर्म समभाव शब्द इस भावना को ज्यादा अच्छे ढंग से व्यक्त करता है। अब रही बात आध्यात्मिकता की, यह तो हम सबके आंतरिक जीवन को आलोकित करने वाली वस्तु है जिसके प्रकाश में हम अपने वाह्य जीवन को भी व्यवस्थित कर पाते हैं। आध्यात्मिकता हर धर्म में, हर मजहब में है, यह किसी एक रिलीजन तक आपको सीमित नहीं कर देती। मैं तो गांधी जी के इस विचार का हामी हूं कि राजनीति में आध्यात्मिकता का होना अपरिहार्य है, वांछनीय है।
प्रश्न - शिक्षा से जुड़े होने के नाते आपने शिक्षा के क्षेत्र में किन - किन सुधारों की आवश्यकता को अनुभव किया है?
उत्तर - मेरा व्यक्तिगत विचार है कि शिक्षक के रूप में बहुत बड़ी संख्या में ऐसे व्यक्ति शिक्षा के क्षेत्र में आ गये हैं, विद्यार्थी को सही शिक्षा प्रदान करना जिनका मूल सरोकार या प्राथमिकता नहीं है। ये लोग शिक्षा के क्षेत्र में मानों बह कर आ गये हैं। शिक्षक होने के लिये आवश्यक है कि आपमें अपने विद्यार्थियों का जीवन संवारने की ललक हो, आपको उसी में संतोष मिलता हो। शिक्षा का क्षेत्र धन कमाना चाहने वालों के लिये नहीं है।
राज्य स्तर पर भी शिक्षा के प्रति वह निष्ठा या सरोकार दृष्टिगोचर नहीं होता जिसकी अपेक्षा की जानी चाहिये। हमारे देश में शिक्षा मंत्री बनने के लिये शिक्षा के क्षेत्र से विशेष जुड़ाव आवश्यक नहीं। यहां तो मंत्री बनने के लिये आवश्यक योग्यताएं कुछ और ही हैं जिनका शिक्षा से कतई कोई लेना देना नहीं है। ऐसे में राज्य स्तर पर भी सही माहौल व निष्ठा का अभाव है।
हमारे विद्यालयों में जो पाठ्यक्रम चल रहे हैं, उनकी समीक्षा भी मुझे आवश्यक प्रतीत होती है। एक दो परिवर्तन की ओर मैने जिक्र किया भी है।
प्रश्न - विज़न 2020 दस्तावेज़ में यह आशा की गई है कि हमारा देश 2020 तक विश्व की एक महाशक्ति बनने की राह पर अग्रसर है और यदि हम सही दिशा में प्रयत्न करते रहें तो हमें महाशक्ति बनने से कोई नहीं रोक सकता। यदि हम महाशक्ति बनेंगे तो ऐसा किन लोगों के बलबूते पर होगा?
उत्तर - आज के माहौल में मुझे तो ऐसा नहीं लगता कि 2020 तक यह स्वप्न सच हो पायेगा पर अगर हमारे नीतिनिर्माता ऐसा सोच रहे हैं तो मैं बहुत खुश हूं। इतना अवश्य कहूंगा कि इस उन्नति के सूत्रधार कम से कम हमारे राजनीतिज्ञ तो कतई नहीं होंगे। यदि ऐसा होगा तो वह हमारे युवा वैज्ञानिकों, टैक्नोक्रेट्स के बलबूते पर होगा।
प्रश्न - सार्वजनिक जीवन से ऐसे पांच व्यक्तियों के नाम जिनको आप अपना आदर्श मानते हैं या बहुत सम्मान करते हैं।
उत्तर - (बहुत सोच विचार के पश्चात्) यदि भारत के सन्दर्भ में आप यह प्रश्न पूछ रहे हैं तो सबसे पहला नाम मैं महात्मा गांधी का ले सकता हूं। उनकी जो विशेषता मुझे सबसे अधिक प्रभावित करती है वह संपूर्ण जीवन भर अपने आदर्शों व सिद्धान्तों के प्रति ईमानदार रहे। खेल के क्षेत्र से मैं सचिन तेंदुलकर को अपना आदर्श इस दृष्टि से मानता हूं कि वह व्यक्ति करोड़ों लोगों की भारी-भरकम अपेक्षाओं का बोझ इतने वर्षों से अपने कन्धों पर उठाये हुए मैदान में उतरता है, यह किसी सामान्य व्यक्ति के बस की बात नहीं। हम सबकी सचिन तेंदुलकर से हर बार श्रेष्ठतम प्रदर्शन की अपेक्षा रहती है और उससे कम प्रदर्शन मिले तो हम उसे पचा नहीं पाते, सचिन से जोड़ कर नहीं देख पाते। इतनी सारी अपेक्षाओं का बोझ इतने दीर्घ काल तक उठाना बहुत बड़ी बात है और इस नाते मैं उनका बहुत सम्मान करता हूं।
मनोरंजन के क्षेत्र में झांक कर देखता हूं कि मैं लता मंगेशकर का बहुत अधिक सम्मान इस लिये करता हूं कि उन्होंने, एक ऐसी इंडस्ट्री में, जिसमें हर रोज कोई न कोई स्केंडल, कोई न कोई षड्यंत्र पलता रहता है, इतने दशकों तक, इतनी सादगी, पवित्रता व कुशलता के साथ इतना कुछ श्रेष्ठ संगीत जगत को दिया है कि उसका दूसरा उदाहरण ढूंढना सरल नहीं है। (काफी समय तक मनन करने के बाद) मेरे लिये तीन व्यक्तियों से आगे बढ़ पाना संभव नहीं हो पा रहा है यह स्वयं में इस बात का परिचायक है कि सार्वजनिक जीवन में वास्तव में शुचिता का व वंदनीय व्यक्तियों का किस हद तक अभाव मैं अनुभव कर रहा हूं।
Sushant K. Singhal
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