एक परिचर्चा मंत्री जी से भी


राज्यमंत्री श्री संजय गर्ग 

(युवावस्था से ही जनवाद से प्रभावित सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में अपने सार्वजनिक जीवन की पारी शुरु करने वाले संजय गर्ग विधान सभा में निरंतर तीन बार सहारनपुर का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। अपनी ओजपूर्ण वक्तृता से विधानसभा के भीतर और बाहर अपने राजनीतिक विरोधियों को भी अपना प्रशंसक बना लेने वाले श्री संजय गर्ग विधि स्नातक हैं । मुलायम सिंह सरकार में आप पहले लोक निर्माण विभाग में, फिर व्यापार कर विभाग में राज्य मंत्री रहे।  अब बसपा सरकार में आप व्यापार कर सलाहकार समिति के अध्यक्ष हैं व आपको राज्य मंत्री का पद प्राप्त है।  उनके द्वारा गठित संस्कार निधि पर्यावरण के संरक्षण के प्रति समर्पित मंच है। चिंतन पत्रिका के लिये आयोजित परिचर्चा में मेरी उनसे जो बात हुई उसी को यहां आप के लिये उद्धृत कर रहा  हूं:-) 
 

आधुनिक भारत पूरी तरह से मेरे सपनों का भारत नहीं है।  ब्रिटिश साम्राज्यवादी ताकतों को उखाड़ फेंकने के बाद जब हम आज़ाद हुए तो लगे हाथों एक ऐसी राह चुनी जानी चाहिये थी जो शोषण मुक्त समाज की स्थापना करतीं।  देश के संसाधनों पर आज भी मुठ्ठी भर सरमायादारों का कब्ज़ा है जबकि ये संसाधन उनके हैं जो वास्तव में इनको पैदा करते हैं।  गरीब, किसान, मज़दूर इनके हाथ में आज भी कुछ नहीं आया है और जब तक यह काम पूरा नहीं हो जाता,  ऐसा नहीं माना जा सकता कि हमें पूरी आज़ादी मिल गई है।   

देश की प्रमुखतम समस्या गरीब और अमीर के बीच में बढ़ रही खाई और गरीबों का शोषण है।  फिरकापरस्त ताकतें सिर उठा रही हैं।  गंगा - जमुनी तहज़ीब पर खतरा मंडरा रहा है।  दलित वर्ग जो इस देश की आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा है, आज भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित है। हमारी दोहरी शिक्षा नीति शोषण को पोषण देने वाली सिद्ध हो रही है।  शासकों और शासितों की भाषा तक अलग है।  ऐसी ही शिक्षा का कुपरिणाम है कि हमारे देश की अफसरशाही और नौकरशाही जनता की सेवा की भावना से कोसों दूर है।  अपनी सीट पर बैठ कर काम करने के बजाय वे काम को जितना हो सके, लटकाने, टाल-मटोल करने,  असहयोग करने के लिये जाने जाते हैं।  हमारे सरकारी मशीनरी भ्रष्टाचार और लालफीताशाही के लिये बदनाम है।  मेरे पास सुबह से शाम तक ऐसे गरीब लोगों की भीड़ लगी रहती है जो अपने सही काम के लिये भी सरकारी कार्यालयों के चक्कर पे चक्कर लगाकर थक चुके हैं।  कॉलिज से शिक्षा प्राप्त कर युवा ऐसे वातावरण को देखते हैं, हर काम के लिये रिश्वत देना सीखते हैं पर फिर भी हम चाहते हैं कि हमारे युवा देश में विद्यमान व्यवस्था के प्रति सम्मान की भावना रखें पर क्या यह संभव है?   क्या हम वास्तव में कह सकते हैं कि हम आज़ाद भारत में सांस ले रहे हैं?

इन्हीं सब समस्याओं को देखते हुए  मैं अपने कॉलिज के दिनों में भी चुपचाप देखते रहने के बजाय आंदोलन की राह पर कूद पड़ा था।  सामने अगर आग से घर जल रहे दिखाई दे रहे हों तो आप निगाह चुरा कर आगे कैसे निकल सकते हैं?  मेरे ताऊजी श्री प्रेमनाथ गर्ग से मुझे बाल्यकाल से ही देश के बारे में चिन्तन की दिशा मिली है। वे एक प्रखर गांधीवादी व स्वतंत्रता सेनानी रहे हैं।  मेरे जीवन पर व विचारों पर उनकी अमिट छाप है।

जीवन में यदि कभी ऐसा अवसर आये कि अपने आदर्शों को क्रियान्वित करने की छूट मिले तो शिक्षा जगत में सुधार से आरंभ करना चाहूंगा ताकि कम से कम अगली पीढ़ी को तो बेहतर बनाया जा सके।  दलित वर्ग में बहुतायत में मौजूद प्रतिभावान बच्चों को भी आगे आने का अवसर मिले, इसके लिये विशेष प्रयास करना चाहूंगा। कला एवं संस्कृति का उद्देश्य समाज की बेहतरी होता है।  मैं इप्टा आंदोलन से कालिज के दिनों से ही जुड़ा रहा हूं।  ऐसे जन-आंदोलनों को बल दिया जाना चाहिये।  खेतिहर किसान, मज़दूर को उसकी मेहनत का वाजिब दाम मिलना चाहिये।  हमारे देश में क्रिकेट ही नहीं,  बाकी खेलों को भी पर्याप्त सम्मान और प्रोत्साहन मिले, ओलंपिक में भारत का सार्थक प्रतिनिधित्व हो, हमारे खिलाड़ियों को सभी आवश्यक सुविधायें व प्रोत्साहन मिलें। युवावर्ग के मध्य पनप रही अनेकानेक बीमारियां जैसे - नशाखोरी, तम्बाखू सेवन, विलासितापूर्ण जीवन शैली - इन सबसे उनका ध्यान हटाने का एक ही उपाय हो सकता है - उसे एक बेहतर व ज्यादा आकर्षक लक्ष्य देना व उसके लिये समुचित वातावरण व सुविधायें प्रदान करना।  मरा - मरा कहने वाले को राम राम कहलाना कठिन नहीं होता।  आज युवा वर्ग निराश है, हताश है इसलिये नशे में डूब रहा है, आतंकवाद की ओर आकर्षित हो रहा है।  यदि उसे बेहतर वातावरण मिले, सुविधायें मिलें, प्रोत्साहित किया जाये तो यही युवावर्ग हमारे देश का सबसे बड़ा खेवनहार बन जायेगा।  इसके अतिरिक्त,  मैं पर्यावरण संरक्षण के लिये प्रदूषण फैलाने वाली सभी गतिविधियों पर कठोर अंकुश लगाना चाहूंगा।  अमरीका का  पिछलग्गू बनने के स्थान पर,  ज्ञान-विज्ञान-तकनीक में हमारा देश विकसित देशों की पंक्ति में आ खड़ा हो सके, इसके लिये उच्च शिक्षा को सर्वजन के लिये सुलभ कराना मेरी प्राथमिकताओं में है।  जब तक हमारी उच्च शिक्षा हमारे देशवासियों को उनकी अपनी भाषा में उपलब्ध नहीं करायी जायेगी, देश का विकास एक स्वप्न ही बना रहेगा। 

जो समाज स्वयं जाग्रत नहीं होता, अपने अधिकारों व कत्र्तव्यों के प्रति सचेत नहीं होता,  उसका भला तो भगवान भी नहीं कर सकते।  जो शोषण कर रहा है, वह तो दंड का पात्र है ही पर गलती उसकी भी होती है जो खुद का शोषण होने दे रहा है।  जनता को उसकी ताकत का एहसास कराना व एक जाग्रत एवं शक्तिशाली समाज के रूप में ढालना ही मेरी सबसे पहली प्राथमिकता है।

टिप्पणियाँ

  1. राज्यमंत्री श्री संजय गर्ग को बहुत बहुत शुभकामनाएं कि वे अपने लक्ष्‍य को प्राप्‍त करने में सफल हों।

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