कुछ अपनी कहूं, कुछ जग की सुनूं | जो अच्छा लगे, उसे गुनता रहूं !!
प्रिय मित्रों,
जीवन की अन्य व्यस्तताओं के चलते आप सब से बतियाने का आज समय नहीं निकाल पा रहा हूं । आशा है, अन्यथा नहीं लेंगे और अपना स्नेह बनाये रखेंगे ।
आपका ही,
सुशान्त सिंहल
१२ फरवरी २००९
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