है मंजूर तो बोलो हां !
सहारनपुर की पुलिस ! तुझे मैं क्या नाम दूं? नाकारा कहूं, भ्रष्ट कहूं, अक्षम कहूं, सोच में पड़ गया हूं। १५ वर्ष के छात्र सजल का अपहरण और फिर निर्मम हत्या, हत्यारों का पुलिस की पहुंच से बाहर रहना तो आपके नाकारापन का नवीनतम प्रमाण है।
पुलिस का ये कहना कि "हमारे पास कोई जादू की छड़ी नहीं है - बिल्कुल सही है, पर सादी छड़ी तो होगी ? या वो भी नहीं है? अपने व्यक्तिगत अनुभव के तीन मामले पाठकों के सम्मुख रख रहा हूं। आप ही बतायें - इनके लिये भी जादू की छड़ी चाहिये होती है क्या?
१ - मेरा एक महंगा मोबाइल सैट खो गया जिसके लिये पुलिस थाने में एफ आई आर दर्ज़ करा दी। वह नम्बर भी बता दिया जिसे जादू की छड़ी बताया जाता है - इलेक्टॉनिक सर्विलियांस पर डालो और जैसे ही फोन कहीं पर प्रयोग किया जायेगा, पुलिस कंट्रोल रूम में कंप्य़ूटर उसे पकड़ लेगा । पर सहारनपुर पुलिस का कंट्रोल रूम पूर्णतः नाकारा है । कुछ नहीं पकड़ता । आज तक कोइ सूचना नहीं है ।
२ - हमारी संस्था ने एक स्मारिका के प्रकाशन की आयोजना की तो मित्रों ने कहा कि वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक महोदय का भी शुभकामना संदेश ले लिया जाये । दो व्यक्ति उनसे भेंट करने उनके कार्यालय गये, अपना अनुरोध सौंपा । वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक महोदय ने वायदा किया कि 'कल' आप मेरे कार्यालय से शुभ कामना संदेश व मेरी फोटो प्राप्त कर लें' पंद्रह दिन तक चक्कर लगाने के बावजूद उनका नाकारा कार्यालय एक शुभकामना संदेश देने में असमर्थ रहा ! यही हाल जिलाधिकारी कार्यालय का भी रहा । क्या एक शुभकामना संदेश देने के लिये किसी जादू की छड़ी की जरूरत होती है? और बात शुभकामना संदेश की नहीं हो रही । बिना उस संदेश के भी हमारी पत्रिका प्रकाशित हो गई। आई. जी. महोदय से संदेश हेतु अनुरोध किया तो उन्होंने तुरंत संदेश बना कर दिया जो आभार सहित प्रकाशित किया गया। मंडल आयुक्त महोदय ने पत्रिका का विमोचन भी किया । बात हो रही है - कार्यक्षमता की । जो अधिकारी एक शुभकामना संदेश के लिये १५ दिनों तक चक्कर लगवा सकता है, वह न्याय व कानून व्यवस्था का क्या खाकर पालन करवायेगा? हां ये जरूर हो सकता है कि इस आलोचना के लिये मुझ पर अपना गुस्सा निकाल लें।
३ - प्रताप मार्केट सहारनपुर के निकट जोगियान पुल पर हर रोज़ ट्रैफिक जाम दिन में कई कई बार लगता है । यदि भूले भटके से कोई पुलिस कर्मी वहां होता भी है तो जाम को कैसे हटया जाये, इसका उसे कोई आइडिया ही नहीं होता । वहीं पर तीन चार दुकानें पुरानी मोटर साइकिलों की खरीद फरोख़्त की पिछले दो - एक साल में खुली हैं जो आधी सड़क घेर कर रखती हैं क्योंकि इतनी सारी मोटर साइकिलें दस बाई दस की दुकान में कैसे समा सकती हैं? हमारा पुलिस प्रशासन, नगर पालिका के अधिकारीगण उस अतिक्रमण को देख कर भी अनदेखा करता रहते है - पता नहीं चल पाया कि इन अधिकारियों को उन दुकानों से इतना मोह क्यों है? आप कुछ हिंट देंगे? क्या इस अतिक्रमण को हटाने के लिये भी किसी जादू की छड़ी की आवश्यकता पड़ती है?
मेरी तुच्छ बुद्धि में तो एक उपाय आता है - सारे पुलिस अधिकारियों व पुलिस कर्मियों के लिये शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक फिटनेस व मेंटल एप्टिट्यूड की कठोर परीक्षा का आयोजन होना चाहिये - जो जो उसमे पास हो जायें वह जनता की सेवा करें और जो फेल हो जायें, वो सब नेताओं की रक्षा करें । बोलिये क्या कहते हैं आप ? है मंजूर तो बोलो 'हां' !
Sushant K. Singhal
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यह हाल तो पूरे देश का है। कोई सुनने वाला नही ।सरकार तो दोषी है ही लेकिन ऐसा करने वालें भी उतना ही दोषी हैं।आप की बात सही है।सहमत।
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