बहस मनोरंजक होती जा रही है!

प्रिय श्री संजय ग्रोवर,

 

सबसे पहले तो आपको आपकी उत्कृष्ट लेखन शैली के लिये बधाई दिये बिना मैं रह नहीं पा रहा हूं।  मुझे लगता है कि यदि आप किसी को गाली भी देते होंगे तो उसे उसमे भी सुवाली जैसा ही आनंद आता होगा।

 

जैसा कि मैने पहले भी जिक्र किया था, मैं ब्लॉग्स की दुनिया में नया-नया बाशिंदा हूं । अभी एक ब्लॉग पर देखा कि उसके स्वामित्वाधिकार को लेकर मार-काट मची हुई है। लोग मिलते जुलते नाम वाले कई सारे ब्लॉग बनाने में जुटे हैं। ऐसे में आपने जिस प्रकार भूमिका बांधते हुए मेरी टिप्पणी को पोस्ट की तरह प्रकाशित किया तो मुझे लगा कि जरूर यह कोई विशेष घटना है।  शायद आम तौर पर ऐसा नहीं होता होगा।  इसीलिये आपकी दरियादिली की तारीफ में कुछ कह बैठा था ।  यदि कुछ अनुचित लिख बैठा था तो क्षमा प्रार्थी हूं ।

 

डी-सेक्सुअलाइज़ेशन शब्द मैने आपके ही कॉलम में पढ़ा था ।  हो सकता है, आपकी पोस्ट के उत्तर में आई हुई टिप्पणियों में से किसी एक में रहा हो ।  पर शब्द न भी सही, विचार तो आपके यही हैं न? "स्त्री को अपनी कई समस्याओं से जूझने-निपटने के लिए देह से मुक्त तो अब होना ही होगा और इसके लिए उसकी अनावृत देह को भी पुरूष अनावृत देह की तरह सामान्य जन की आदत में आ जाने वाली अनुत्तेजक अवस्था के स्तर पर पहुंचाना होगा ।"

 

मुझे लिखने से अधिक प्रिय पढ़ना लगता है। आपको पढ़ना तो वैसे भी बहुत आनंददायक है ।  आपके लंबे चौड़े आख्यान को पढ़ कर मैने एंजॉय तो बहुत किया पर यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा है कि आखिर आप किस प्रकार की व्यवस्था के पक्षधर हैं। यह तो क्षण भर के लिये मान लिया कि हमारे समाज में सब कुछ गलत ही गलत है, पर क्या आप एक ऐसी वैकल्पिक सामाजिक व्यवस्था का ब्लू प्रिंट नहीं देंगे जिस पर चल कर व्यक्ति और समाज - दोनो का हित हो और दोनो एक दूसरे के लिये पोषक  होंजैसे राष्ट्र का संविधान होता है, क्लब, सोसायटी, कंपनी आदि के जीवन लक्ष्य होते हैं, ऐसे ही आपसे यदि कहा जाये कि आप भी एक ऐसा "मिशन स्टेटमैंट" हमारे समाज के लिये तैयार करें और उस मिशन को कैसे प्राप्त किया जायेगा, यह मार्ग भी  सुझायें तो आप क्या लक्ष्य देंगे और क्या मार्ग देंगे

 

सुशान्त सिंहल

www.sushantsinghal.blogspot.com

 

 

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